तलाश


बहुत दिन हो गई -
एक भी सुंदर अनुभव
मेरी दिल को छू कर नही गए।
मेरी मन-आकाश को 
घिरती हुई कोई ईंद्र-धनुष
मुझे नही दिखाई दिए।

बहुत दिन बीत गई -
मैं उस गली से नही गुजरी
जहाँ खिल-खिल कर 
महकती रहती है -
रंग-बिरंगी शव्दों के फूल,
जिससे मैं ढूंढ कर लाती हूँ 
कई मन-मोहक फूल और कलियाँ,
सजा लेती हूँ कविता सी सुंदर 
मेरी एक सपनों की दूनिया।

बहुत दिन पार हो चली -
सुनसान, अंधकार एक कक्ष में 
मै मुझी को ही ढूंढती रही,
ढूंढती रही.......

- बिजुली प्रभा बैश्य

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