बहुत दिन हो गई -
एक भी सुंदर अनुभव
मेरी दिल को छू कर नही गए।
मेरी मन-आकाश को
घिरती हुई कोई ईंद्र-धनुष
मुझे नही दिखाई दिए।
बहुत दिन बीत गई -
मैं उस गली से नही गुजरी
जहाँ खिल-खिल कर
महकती रहती है -
रंग-बिरंगी शव्दों के फूल,
जिससे मैं ढूंढ कर लाती हूँ
कई मन-मोहक फूल और कलियाँ,
सजा लेती हूँ कविता सी सुंदर
मेरी एक सपनों की दूनिया।
बहुत दिन पार हो चली -
सुनसान, अंधकार एक कक्ष में
मै मुझी को ही ढूंढती रही,
ढूंढती रही.......