दीपाली अग्रवाल की कविताएँँ




दीपाली अग्रवाल गंभीरता से जीवन के विविध रंगो और अनुभूतिओं को अत्यंत संवेदनशीलता के साथ  अभिव्यक्त करनेवाली कवयित्री है। उनकी रचना मे विचारोकी परिपक्वता दिखती है। उनकी रचना पाठको को अंतर्मुख करती है। दीपालीजी की रचना मे एक उमदा खयाल तो है, उसके अलावा, उनकी कविता भावूकता से ओतप्रत भरी हुई है। कम शब्दोमें यह कवयित्री बहुत कुछ कहती है। सूक्ष्म निरीक्षण, दीर्घ चिंतन, और कम उम्र मे आये हुए अनुभवोसे अभिव्यक्त होनेवाली उनकी रचना भावात्मक पातलीपर मन को छुती है।

बहुत बार कवि लोग अपने शैली सामर्थ्यके उपर अपनी रचनाओको पेलते है, लेकीन दिपालीजी वैसा नही। कविता, अनुभव, भाषा, और कला यह आपकी कविता का वैशिष्ट्य मुझे लगा।  अर्थात, सदा मनुष्यता का पक्ष लेती रही अग्रवालजी कि कविता इंसानित का गीत है। इस शांत, संयमी, विचारक कवयित्री के सभी रचनाओंमे उनकी विचारोकी स्पष्टता, विचारोकी कक्षा नजर आती है। मानवीय अंतरंगता को रेखांकित करनेवाली उनकी कुछ कविताओं का बिम्ब पाठको के मन में होता है। उनकी कविता में जीवन की और समाज व्यवस्था की विसंगतियाँ मुखर होती है, उसके अलावा दीपालीजी की कविता में जीवन का सौंदर्य और जीवन के प्रति आशावाद एक नई काव्यभाषा के साथ उपस्थित होता है। कवयित्री जीवन के सौंदर्य के प्रतिमान रचती है। सहजतम ढंगसे लिखनेवाली इस कवयित्री का जीवनानुभव व्यापक और सघन है, इसलिए यह कवयित्री तमाम विषय को, अनुभवों को अपने रचना-संसार में पिरोती है। जटिल विषयों पर बेहद सरल और आम भाषा में लेखन उनकी रचनाओं की विशेषता है। लघुता स्वरूप की इन रचनाओंमें  एक सहजता के साथ जीवन स्पंदनो को अंकित करती है। सूक्ष्म संवेदनाओं को अत्यंत सरलतम रूप मे अभिव्यक्त करना इसके साथही वास्तवता (यथार्थ), गंभीरता, और संवेदनशीलता यह दीपालीजी की रचना की बडी विशेषता है।  

-संपादक



१) ईश्वर की उम्र कम होती है

लोगों को महसूस करवाते रहो
कि कितने ख़ूबसूरत हैं वे


आलोचना भी करना तो यूं कि,
कोई बेहतर ही बने

किसी का दिल दुखाने से
ईश्वर की उम्र कम होती है


२) कुछ कविता कह देना

इन दिनों, ख़ूब कहीं फूल पर कविताएं 
मुझे फूल बहुत प्रिय हैं
इतने कि मृत्यु के बाद
मेरे लिए फूल मत लाना


मरे हुए लोगों के लिए
किसी को मारना ठीक नहीं
हाँ, यूं कर सकते हो
कुछ कविता कह देना


३) चेहरे

एक आइना एक ही मंज़र अक्स दिखे बहुतेरे
एक शख़्स में छुपे हुए हैं जाने कितने चेहरे

कहने को तो लफ्ज़ एक है लेकिन
मौसम अपने रंग कई दिखलाता
आसमान की तहें अगर खोलें तो
हर तारा एक ढंग नया बतलाता
ज़हन में यूं ही दबे हुए हैं कितने कितने पहरे
एक शख़्स में छुपे हुए हैं जाने कितने चेहरे


बाज़ार में जो बिकता है मुखोटा है
हर बात में कोई भेद छुपा होता है
झूट है वो जो फ़क़त नज़र में आए
सच वो है जो हमें नहीं दिखता है
उतने भेद खुले हम पे हम डूबे जितने गहरे
एक शख़्स में छुपे हुए हैं जाने कितने चेहरे


काम, क्रोध, श्रृंगार, लोभ
जैसी धूप पड़ी हम पे
वैसे ही बन गए साए
कभी खुद से भागे हम कभी खुद के साथ हैं ठहरे
एक शख़्स में छुपे हुए हैं जाने कितने चेहरे
हम ख़ुद ही समझ न पाए


अपने हाथों लिए हुए है हमने अपने चेहरे
जैसी पड़ी ज़रुरत हमने वैसे पहने चेहरे


आंखों की नज़ाकत - चेहरे
दिल की अदावत - चेहरे
उम्मीद जगाएं - चेहरे
आस बुझाएं - चेहरे
बात छुपाएं - चेहरे
सब भेद बताएं - चेहरे
ख़ुशी जताएं - चेहरे
मायूस हो जाएं - चेहरे


चेहरों में दफ़न हैं चेहरे
चेहरों से ही निकले चेहरे


सब सह जाएं चेहरे
आवाज़ उठाएं चेहरे
इतने-उतने हैं चेहरे
जानें कितने हैं चेहरे
ज़िंदा शरीरों में मुर्दा हैं कुछ चेहरे
कुछ वक़्त ले गया चेहरे
कुछ साथ रह गए चेहरे


४) ...लग सकते थे गले!

पुकारे जाने पर सब तो नहीं रुकते
कुछ इसलिए भी जाते हैं कि,
पुकारा नहीं गया


तुम एक बार सदैव पुकारना
हर जाने वाले को
ताकि कोई ग्लानि न रहे


ग्लानि न रहे कि 
तुम लग सकते थे उसके गले
मौत से पहले 


५) दोगला समाज

समाज दोगला है 
जो प्रेम की बात करता है


पंखे से उतरे युगल की आख़िरी चिट्ठी
फाड़ दी जाती है
नवविवाहिता के चौथे महीने में बदन पर
दहेज के निशान होते हैं
वृद्ध आंसुओं का साथ देता है
मात्र रात का सन्नाटा


समाज गवाह है;
बेरहमी से मारे गए हैं दरवेश
बगीचा गवाह है कि 
तोड़ लिए गए पसंदीदा फूल सदैव


६) सड़क

कवियों की सड़क चाँद तक जाती है
शायरों की महबूबा तक
क्रांतिकारी सड़क पर देते हैं धरने
वहीं किसी दीवार पर नारे लिखते हैं
अमीर कहता है
फलानी सड़क से आओगे
तो बंगले तक पहुँच जाओगे।


सड़क के भीतर घर बनते हैं
सड़क किनारे फैक्ट्री
फैक्ट्री बंद हैं इन दिनों
भीतर बने घरों से निकलकर
अब सड़क नाप रहे हैं मज़दूर।


मैंने एक कविता उन्हें सुनाई
चाँद तक जाती सड़क पर
तो उन्हें चाँद में रोटी दिखी
मगर चाँद तो रोटी नहीं देता
सड़क देती है
जब गाँव से शहर लाती है
अब वह विपरीत हो चली है।


मुझे लगा कैसे बदल जाती है सड़क
लेकिन चाँद, महबूबा, क्रांति 
और अमीरों की सड़क नहीं बदलती
मरम्मत से बेहतर ही होती जाती है हर साल।  


७) ईश्वर कितने रूप मे प्रकट होता

एक बीज से निकल आता है
समूचा वृक्ष
धरती से कैसे उग जाती हैं
ये सभी फसलें
ओस की बूँद से सुंदर लगते हैं
फूलों के रंग


हृदय से होंठ पर आती है
शिशु की मुस्कान
जैसे पहाड़ों पर बादल
झूम कर आता है


मैं अचंभित हूँ कि,
ईश्वर कितने रूप में प्रकट होता है
हमारे समक्ष।

-दीपाली अग्रवाल
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