सुनील अभिमान अवचार यांच्या मराठी कवितेचा हिंदी अनुवाद






१) सोशल डिस्टेंसिंग की कविता 
 

फिर एक बार इस कोरोनाकाल में 
वे और हम के बीच 
'सामाजिक अंतर 'अधिक स्पष्ट हुआ है 
वे  : 'अपनी बाल्कनी से निकलकर कृतज्ञ से 
थाली पीट रहे हैं' 
और 
हम  : 'प्राण मुट्ठी में लेकर कोसों दूर /पगथलियाँ घिसते 
चले जा रहे हैं ! '


वे सुरक्षित हैं /और हम बे -वारिस 


कल आयफोन से काॅल करके मित्र ने कहा- 
"गंदे कहीं के ये ही फैला रहे हैं विषाणु "
FB पर सघन भयग्रस्त धारावी के फ़ोटो तले 
एक सवर्ण ने की कमेंट्स 
"धारावी पर फेंक देना चाहिये बम ! "


TV  ऑन करके देखने पर /दिखाई पड़ते हैं 
लपककर लड़ते हुए मुर्गे अतार्किक 
घृणा और मूलतत्ववाद से भरपूर 
TRP की लालसा में । 


दिहाड़ी मजदूरों के चेहरे पर बेबसी के चित्र 
नजरों से कैसे ओझल किये जाये 
और इन धर्मांध दिमाग़ का 
कैसे किया जाये निर्जंतुकरण ? 


Online सब दिखाई दे रहा था  
कोई खेल रहा है रोमांटिक गीतों की अंत्यक्षरी 
कोई पुरानी तस्वीर में सहला रहा है  भूतकाल 
कोई अच्छी कविताओं को लाईव पढ़ रहा है । 
क्रूरकाल एक कंधे से दूसरे कंधे पर /चढ़ाकर बोझ 
एक कंधे से दूसरा कंधा नापते 
पाँव -पैदल चल रहा था..... 


ऐसे समय मैं कैसे पढूँ पुस्तक /शांततः ? 
मैं कैसे सो सकता हूँ सुखपूर्वक ?
आईने में कैसे देख सकता हूँ  कुरूप अक्स ? 


काल पीठ पर बरसाता है कोढ़े 
40 करोड़ बेरोज़गार हाथ 
सैंकड़ों किलोमीटर पगथलियों के पाँव 

दीये तले के अंधकार का आक्रोश 
लाॅकडाऊन में अधिक गहन, अंतहीन....! 


● मराठी से हिंदी अनुवाद  : राजेंद्र गायकवाड़



2) अस्पृश्य मुंबई


बाबासाहेब ने कहा है- 'यहाँ के गांव जातिव्यवस्था की बर्बरता से सड़ गए जोहड़ है...'
जान की पर्वा किये बिना पीठपर पेट बांधकर 
इस भयानक महानगर में हाजिर हो गया..
हाइवे के फुथपाथ अपने बना लिए
कुछ को रक्त चूसने वाले कारखानों ने काम दिया
कुछ को महानगरपालिका के नाले साफ करने पडे
नरक यातना सह रहा हूँ !
इस बेवारस कंगाल शहर में
कुछ लोग कहते हैं स्वर्ग का द्वार है यह मुंबई
कुछ कहते हैं सपनों का नगर है।


हमारे हिस्से में
जी तोड़ मेहनत करने पर ही
ठुसें और लाथों की मार!
आज आजादी को साठ साल बीतने पर भी
नयी 'डिजिटल' दुनियां का जल्लोष होने के बावजूद!
कहते हैं हमारा सफर 'मेनस्ट्रीम' में जारी है!
जेब में बहुत सारा पैसा भी आया है 
लेकिन मुंबई के ऊंचे टॉवर वाली बिल्डिंग में फ्लैट मांगने पर
'आप कौन?' संदेह से पूछा जाता है
सच सच बताने पर
मुँह फेर कर 'नहीं' कहती है ये मुंबई!
शॉवर के नीचे खड़ा हूँ
बदन पर महंगी साबुन घिसते हुए
लेकिन इस शरीर पर चिपकी चमड़ी से
अस्पृश्यता का दाग कहीं मिट नहीं रहा है।


आपको को ही लखलाभ हो यार ये मुंबई
हमें बिब के डाग दिए बगैर कई जीने नहीं देती है ये मुंबई!



● अनुवाद- शिवदत्ता वावळकर


3) नई दुनियां के लिए


'उना आंदोलन में शामिल उस बेटी के लिए'
बेटा,
तेरी बंधी हुई मुट्ठी 
बड़ी सशक्त है
वह बहुत सुंदर लगती है
असीम नीले गगन में
तुम अकेली नहीं हो
तेरे साथ है
हजारों सालों के संघर्ष का इतिहास
बेटा,
हमारा संघर्ष सिर्फ रोजी रोटी का नहीं है
वह आत्मसम्मान और अस्मिता की लड़ाई है
यहाँ की धर्म संस्कृति को
स्त्रियों से अधिक महत्वपूर्ण लगती है गायें!
यहाँ पर चींटियों को खिलाई गई शक्कर,
लेकिन मनुष्य को रखा गया है
भूखा-प्यासा!
इसीलिए कह रहा हूँ बेटा
इस अमानवीय व्यवस्था को 
जबाब पूँछने ही होंगे
और करने होंगे दो-दो हाथ!
बेटा,
सच में
तू बन गई है
हमारे मन का आक्रोश
तू बन गई है मानवता की ताकत
और
तू बन गई है आशा-आकांक्षा
इस नई दुनियां के लिए।



● अनुवाद- शिवदत्ता वावलकर



परिचय- 

डॉ सुनील अभिमान अवचार

मुबंई विद्यापीठात मराठीचे प्राध्यापक असून समकालिन संवेदनशील कवी /चित्रकार म्हणून प्रसिद्ध आहेत. त्यांचे बरेच कविता संग्रह प्रसिद्ध आहेत. नुकताच त्यांचा "केंद्र हरवत चाललेल्या वर्तुळाचा परिघ" तसेच त्याचा इंग्रजी अनुवाद " we, the Rejected People of Indian" प्रसिद्ध झाला आहे. ते नेहमीच कविता, चित्राच्या माध्यमातून आम आदमीची वेदना मांडत आहेत. "कोरोना कोविड 19" च्या लॉकडाउनच्या काळात सर्व  चित्रे सामान्य माणसाची कशी जीवघेणी फरपट, तसेच  विषमतेच्या भारताचा खरा चेहरा दाखवणारी आहेत. तसेच त्यांची कविता नवा विषय आशय मांडणारी आहे. 

Previous Post Next Post